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क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैती (नव परिवर्तन और हिंदी ब्लॉगिंग)

मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
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जुबाने अरब में य’ था सब कलाम,

किया नज्म हिंदी में मैंने तमाम|

अगरचे था अफसः वो अरबी जुबाँ,

व लेकिन समझ उसकी थी बस गिराँ|

समझ उसकी हरइक को दुश्वार थी,

कि हिंदी जबाँ याँ तो दरकार थी|

इसी के सबब मैंने कर फिक्रोगौर,

लिखा नूरनामे को हिंदी के तौर|

आधिकारिक रूप से हिंदी चिट्ठाकारी अपने ईग्यारहवें वर्ष में है| आज से दश वर्ष ५ माह पूर्व दिनांक २१ अप्रैल २००३ को श्रीमान आलोक कुमार द्वारा लिखे गए चिट्ठे को हिंदी जगत का पहला चिटठा माना जाता है| इसी के ५ महीने बाद पद्मजा जी द्वारा लिखे गए चिट्ठे को किसी महिला द्वारा लिखा गया पहला चिट्ठा और उन्हें प्रथम महिला चिट्ठाकार माना गया| २५ अगस्त २००५ को हिंदी चिट्ठाकारी ने शतक लगाया| अब हिंदी भाषा के पास सौ बेमिसाल चिट्ठाकार हो चुके थे, किन्तु तब भी इसे सशक्त नहीं कहा जा सकता था| लोगों के अपने अपने ब्लॉग थे और स्तरीय लेखन यदा कदा ही देखने को मिलता था| पाठक वर्ग सीमित था और स्थापित साहित्यकारों ने तो बकायदा इसका मखौल भी उड़ाया| हिंदी गुटबाजी का शिकार रही है और चिट्ठाकारी जगत में यह गुटबाजी खुल कर सामने आई| प्रारम्भिक सामाजिक संचार माध्यम ऑरकुट ने जब हिंदी लेखन का विकल्प भी प्रस्तुत किया और लिप्यान्तरण के माध्यम से यूनिकोड में रोमन से देवनागरी के अक्षर गढे जाने लगे तब तकनीकि रूप से समृद्ध हिंदीभाषियों ने इसे हाँथोहाँथ लिया और यह आशंका व्यक्त की जाने लगी की अब परम्परागत लेखन के दिन लदने वाले हैं और शीघ्र ही समाचारपत्रों तथा पत्रिकाओं के अंतरजाल संस्करण मुख्यधारा वाले पत्र पत्रिकाओं को कालातीत कर देंगे| यह आशंका निर्मूल सिद्ध हुई क्योंकि मनुष्य का अवधानात्मक विस्तार सीमित होता है और ई माध्यमों की अपेक्षा मुद्रित सामग्री को दीर्घ काल तक संजोये रखना अधिक आसान होता है|

क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैती तदैव रूपं रमणीयताया:|

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