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बगरयो बसंत है

मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
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कूलन में, केलि में, कछारन में, कुंजन में,

क्यारिन में, कलिन में, कलीन किलकंत है |

कहे पद्माकर परागन में, पौनहू में,

पानन में, पीक में, पलासन पगंत है |

द्वार में, दिसान में, दुनी में, देस-देसन में,

देखौ दीप-दीपन में, दीपत दिगंत है |

बीथिन में, ब्रज में, नवेलिन में, बेलिन में,

बनन में, बागन में, बगरयो बसंत है |

बसंत की नैसर्गिक सुषमा ने पद्माकर ही नहीं पता नहीं कितनों को अभिभूत किया होगा? नीलकमल, मल्लिका, आम्रमौर, चम्पक और शिरीष कुसुम धारी नवजात मन्मथ बसंत पंचमी की शुभ वेला में अपने त्रैलोक्य विजयी बाणों से समग्र वसुधा में अपने शुभागमन का मंगल उद्घोष करेगा किन्तु संकेत अभी से मिलने लगे हैं| इसे अपना परिचय देने के लिए वर्तमान प्रचार तन्त्र का सहारा नहीं लेना है| यह मधुमास की वेला है, इसलिए इसमें वेलेंटाइन दिवस जैसी उच्छृंखलता नहीं| इसे प्रणय निवेदन करने के लिए चीखना नहीं होता| इसे प्यार जताने के लिए चिल्लाना नहीं पड़ता| यह विरोध के ऊपर स्वीकृति की विजय पताका है, जो झुकना नहीं जानती| यह ‘क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैती तदेव रूपं रमणीयताया:’ से प्रेरित होकर प्रतिपल नवीन है, जो रुकना नहीं जानती| यह चरैवेति, चरैवेति का जीवन गीत है| यह ध्वंस की पीठिका पर सृजन का मधुमय संगीत है| यह केले की तरह कटता है, फिर भी फलता है| यह विरही हृदयों में संताप बन कर पलता है|

कोयलें कूकने लगी हैं| भ्रमर मँडराने लगे हैं| तितलियों का झुण्ड अमिधा, लक्षणा और व्यंजना में कलियों से मृदु संवाद कर रहा है| वसुधा ने भी षोडश श्रृंगार कर लिया है| प्रकृति वसुधा देवी के शरीर पर चन्दन, अगर और कालीयक का अंगराग मल चुकी है| दशों दिशाओं के दिग्पालों ने गगन में यायावरों की भाँती विचरते फेनकों को एकत्रित कर वसुधा देवी को जलविहार के लिए समर्पित कर दिया है| सरसों के पीत वस्त्र पहन कर पृथ्वी अपने प्राकृतिक सौंदर्य पर आत्ममुग्ध है| देवि उषा और देवि संध्या ने अरुणिमा और गोधूलि के रूप में धरती को मांग सजाने के लिए सिंदूर प्रदान किये हैं| गेंदा और गुलाब के पुष्पों से वसुंधरा ने अपने नखों, तलुवों और ओष्ठ पर महावर सजाये हैं| पुरवैया के मादक झोंकों ने धात्री की केश सज्जा की है| केसर के पुष्पों से विश्वम्भरा ने मस्तक पर तिलक धारण किया है और टेसू के पुष्पों का मुखराग लगाया है| दुग्ध धवल चन्द्रिका रत्नगर्भा की दंतराग है| देवि निशा ने अपनी समस्त कालिमा सर्वेसृहा को नेत्रों में काजल लगाने के लिए दिया है| समस्त जीवधारी मेदिनी के आभूषण हैं| पर्वत काश्यपी के कटी पर मेखला की भांति सुशोभित हो रहे हैं|

वह कौन है जिसे मदन ने मथा नहीं है और बसंतोत्सव के परिप्रेक्ष्य में तो सभी झूम उठें है| देखो, इसे अपने बाजारवाद से दूर रखना| यह कृष्ण की विभूति है ‘ऋतूनां कुसुमाकर:’,
इसमें दिव्यता है, भव्यता है, गौरव है, चेतना है और तारुण्य है| क्या तुम देखते नहीं की आबाल वृद्ध नर नारी सभी मस्ती में भर कर झूम रहे हैं किन्तु किसी ने भी दामिनी को लपकने की चेष्टा नहीं की|
मुन्नी बदनाम होती हो तो हो, शीला जवान होती हो तो हो| बसंत ने मुन्नी और शीला की आत्मचेतना का हरण नहीं किया|
बसंत सर्वव्यापी है| वह रावण की रंगशाला में भी है और राम की कुटिया में भी| वह सीता की सौम्यता में भी है और शूर्पणखा की कुत्सा में भी| वह अपर्णा के तप में भी है और रूद्र के संयम में भी| यही बसंत एक स्थान पर राग है तो दुसरे स्थान पर वैराग्य भी| यह कृष्ण के हांथों की बांसुरी है तो प्रलयंकर के नयनों से निकली प्रलयाग्नि भी| काम अंगी था तो विकलांग था, अनंग हुआ तो सर्वांग हो गया| बसंत पंचमी के मौन और होलिका दहन की कोलाहल के बाद रंगोत्सव| यह है मधुमास का दर्शन| क्या तुम्हारा समग्र सप्ताह (वेलेंटाइन वीक) हमारे एक निमिष के भी समक्ष स्थिर रह पाने में सक्षम है?

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