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तुम सुन्दर नहीं हो

मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
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यह कैसी सुंदरता –

जिसने एक सूबेदार के प्राण ले लिए –

और घायल कर दिया –

दो सिपाहियों को|
पाकिस्तान ने शूर्पणखा को भेजा है|

और कैसे भूलूँ? तुम –

हमसे मिलने के पूर्व –

मिल आई हो –

गिलानी, मीरवाइज और यासीन मालिक जैसे –

लफंगे, जेहादी काश्मिरिओं से|
सुंदरता, सत्यता और शिवता में निहित है|

हमारे देश के शहीदों की –

सडती हुई लाशों से –

फूटती हुई सड़ांध –

तुम्हारी कंचन काया से निकल –

हमारी नासिका को प्रदूषित करती है|

और असर भी तो हुआ है –

प्रदूषण का|

देख, हमारे देश का भटका हुआ नौजवान –

तुमसे शादी करना चाहता है|

हिना! तुम सुन्दर नहीं हो –

भले ही सत्रह लाख का पर्स,

तेरह लाख की घडी –

सब कुछ लूटा दो –

अपनी कल्पित सुंदरता के साथ –

इस अनन्य भारत पर|

फटे – पुराने चिथड़ों में –

किसी तरह अपनी लाज बचाती,

किन्तु,

स्वाभिमानी,

उपले बीनने वाली,

एक परित्यक्त ग्रामीण कन्या –

तुमसे कहीं अधिक सुन्दर है|

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