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चंद सवालात

मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
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एक पुरुष ने जाने कितने महानरों को निगल लिया|

कभी सत्य पर चला नहीं जो सत्याग्रह का नाम लिया||

अब बसंत के गीत सुनाना पौरुष को मंजूर नहीं|

माँगे सुनी हुई हाय, अब इज्जत है सिन्दूर नहीं||

श्रृंगार आज अस्पृश्य हुआ, नंगापन पूजा जाता है|

सौ सौ मछली खाकर बगुला, बगुला भगत कहाता है||

कोई कहता ओसामा जी और कोई ओबामा जी|

लोकतंत्र के बाजारों में बिकती है सब्जी भाजी||

आतंकी का चारण बनकर राजनीती नतमस्तक है|

कालनेमि के हांथो में भगवद्गीता की पुस्तक है||

रामचरितमानस को जो पानी पी पी गरियाता है|

इंटेलेक्चुअल उम्दा सबसे भारत में कहलाता है||

यहाँ खून सस्ता बिकता, आँखों का कोई मोल नहीं|

उनको ही पूजा जाता है जिनका कोई रोल नहीं||

कुछ अध्यात्मिक शब्दों को जागीर बना कर बैठे हैं|

सत्य, अहिंसा सोने की जंजीर बना कर बैठे हैं||

उलटी सीधी परिभाषा गढ़ने वाला यह खादी है|

प्रश्नचिंह पर प्रश्न उठता हूँ बोलो आजादी है?

क्यों गाँधी का ग्रहण लगा है नेताजी के सपनों में?

सावरकर, आजाद, तिलक और मालवीय से अपनों में||

सूत कातने से शोषण से मुक्ति नहीं मिल सकती है|

भ्रामक प्रचार करने वालों यूँ नहीं दासता मिटती है||

यूँ ही अनुनय करने से, हाँ, कोई अधिकार नहीं देता|

फूल नहीं देता है जो सुन लो तलवार नहीं देता||

सावरकर, नेताजी जैसों ने जब खून बहाया है|

महाकाल के जबड़े से फलरूप आजादी पाया है||

और उसका सौदा करने वालों ने उसको काट दिया|

हाय हमारी भारत माता टुकड़े टुकड़े बाँट दिया||

हर टुकड़े पर अलग अलग टुकड़े की मांग उठाते हैं|

खंडित, खंड खंड करते हम खुद से बटते जाते हैं||

गैर कोई आता भारत का अधिनायक बन जाता है|

जन गण मन अधिनायक कह कर भारत शीश झुकता है||

पोप मरे तो मरे हमारा परचम क्यों झुक जाता है?

एक विदेशी के मरने पर भारत शोक मनाता है||

क्यों अब भी भारत माता भारत में क्रंदन करती हैं?

एक भिखारिन बनी हुई सबका अभिनन्दन करती हैं||

चीन सुरक्षा परिषद में हमको आँखे दिखलाता है|

ताल ठोंक कर पाक हमारी सीमा में घुस आता है||

कुछ आतंकी संप्रभुता को चिंदी चिंदी कर देते|

हम दानवी हितों की खातिर उनकी अगवानी करते||

क्यों प्रत्यर्पण पर एक छोटा देश हमें उलझाता है?

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