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काशी में होली मनावें भवानी, भूत-प्रेत संग औघड़ दानी |
खाय भाँग का गोला , जगत का कण कण, बम बम बोला ||
अंग भभूत गले मुंडमाला,
कटी पर बांधे हैं मृगछाला|
करुणामय नयनों से देखे ,
मस्त, मस्त का टोला ||
जगत का कण कण, बम बम बोला |
इधर अघोर रूप करुणामय,
सर्वेश्वरी हैं उधर दयामय |
रास अलौकिक, दिव्य जगत में
सिद्धगणों का होला ||
जगत का कण कण, बम बम बोला |
इधर विनायक, भैरव नाचे,
महारुद्र का डमरू बाजे |
मन-मयूर पर चढ़कर कार्तिक
गाये सोरठा, रोला ||
जगत का कण कण, बम बम बोला |
सिंहवाहिनी कर पिचकारी,
सभी देवता देते ताली|
संसृति के अनेक रंगों में
एक रंग ही घोला ||
जगत का कण कण, बम बम बोला |
इंद्र देवता भी मुस्काए,
रंग बिरंगे बादल छाये|
नभ से रंग बरसता झम झम
भींग गया यह चोला||
जगत का कण कण, बम बम बोला ||
रंगोत्सव के शुभ अवसर पर श्री गुरुदेव जी के चरणों में इस अकिंचन का यह काव्यमय प्रसून सादर समर्पित है|
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