Menu
blogid : 1151 postid : 377

कविताएँ रह गईं अधूरी (गीत)

मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
  • 65 Posts
  • 969 Comments

कभी न पूरी हो पाती है, मन की मन में रह जाती है |

कैसा शैशव और तरुणाई?

केवल सिसकी और रुलाई|

नियति नटी का नृत्य अनोखा

जब देखो आखें भर आयीं|

मस्त कोकिला भी रोती है जब पंचम स्वर में गाती है |

कभी न पूरी हो पाती है, मन की मन में रह जाती है |

मिटी नहीं हृदयों से दूरी,

कवितायें रह गयी अधूरी|
जाने कितना और है जाना?

यात्रा कब यह होगी पूरी?
संशयग्रस्त बना कर जीवन मृगतृष्णा छलती जाती है |

कभी न पूरी हो पाती है, मन की मन में रह जाती है |

पूरा दीपक, पूरी बाती,

तेल नहीं लेकिन किंचित भी |
बेकारी मजबूर बनाती,

अन्धकार का शाश्वत साथी |
तोड़ रहा दम इक दाने को पौरुष की चौड़ी छाती है |
कभी न पूरी हो पाती है, मन की मन में रह जाती है |

तेरा तो प्रभु सोने का है,

मेरी तो माटी की मूरत|
वंदनीय है तेरा आनन,

मेरी बचकानी सी सूरत |
चिंदी में लिपटे लोगों की छाया भी मुंह बिचकाती है|
कभी न पूरी हो पाती है, मन की मन में रह जाती है |

कहते हैं संघर्ष हमेशा

सत्य सदा विजयी होता है |
जिसमे साहस है वह जीता |
केवल कायर ही रोता है |
यम नियमों के बंधन वाली यह छलना छलती जाती है |
कभी न पूरी हो पाती है, मन की मन में रह जाती है |

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to allrounderCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh