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वेक अप इंडिया

मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
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यदि आप हिंदू, हिन्दुधर्म की रक्षा नहीं करेंगे तो कौन करेगा? यदि भारत माँ की संताने ही उसके धर्म का पालन न करेंगी तो उसे कौन बचायेगा?केवल भारत ही भारत को बचा सकता है| भारत और हिंदू धर्म एक है|हिंदू धर्म के अभाव में भारत का कोई भविष्य नहीं है|हिंदू धर्म, भारत की कब्र में चला जायेगा|तब भारत पुराशास्त्रियों और पुरातत्वज्ञों का विषय मात्र रह जायेगा और तब भारत न तो देशभक्ति वाला देश रह जायेगा और न एक राष्ट्र|

श्रीमती बासंती देवी (डा.एनी बेसेंट )

यह आर एस एस के विचार नहीं हैं|हिंदू जागरण मंच ने इसे नहीं कहा|किसी हिंदू आतंकवादी को ऐसा कहते मैंने नहीं  सुना|आचार्य गिरिराज किशोर, प्रवीन तोगड़िया,अशोक सिंघल या योगी आदित्यनाथ ने पुरातत्व संग्रहालय वाली भाषा बोली है की नहीं यह मैं नहीं जानता|यह भाषण तो एक ऐसे हिंदू आतंकवादी ने बोला है जिसका जन्म १ अक्टूबर १८४७ को लन्दन में हुआ|१८८२ तक वह एक ईसाई रहीं|१८८९ तक उनके दार्शनिक विचारों का परिपक्वन होता रहा,इसी वर्ष उन्होंने अपने आपको थियोसोफिस्ट घोषित किया|उन्होंने १८९३ में हिंदू शब्द का मुखौटा पहना|७ जुलाई १८९८ को सेन्ट्रल सनातन कालेज नहीं सेंट्रल हिंदू कालेज की स्थापना की, जो आगे चलकर प्रातः स्मरणीय महामना मदन मोहन मालवीय जी द्वारा स्थापित कशी हिंदू विश्वविद्यालय का आधार बना|डॉ. एनी बेसेंट को भी शब्दों का निरुक्तिक विन्यास करना आता था|

विश्वबंधुत्व और जगंमैत्री की भावनाओं से परिश्रुत होने पर भी श्रीमती बेसेंट को वेदों और ऋषियों के देश भारत से,गौरवपूर्ण अतीत के अधिकारों पर अब दुर्दिन में फंसे और चारों ओर से निन्दित भारत माता की संतान से विशेष प्रेम  था| तब उन्होंने हिंदुत्व को ही संबोधित किया|

प्रत्येक देश का अपना एक राष्ट्रिय चरित्र होता है|मनोविज्ञान में इस पर व्यापक शोध हुए हैं|जो बात एक संस्कृति में सत्य है, वह दूसरी संस्कृति पर थोपना न सिर्फ हास्यास्पद है वरन आत्महंता है| मिस्त्र और मेसोपोटामिया ने पुरे विश्व को रिलीजन दिया, यूनान ने ब्यूटी दिया,रोम ने ला दिया,इरान ने प्योरिटी दिया,चल्दिया ने साइंस दिया और भारत ने धर्म| मैं अपने पहले के ब्लॉग “धर्म क्या है’ में इस विषय पर पहले ही लिख चूका हूँ|फिर भी पता नहीं क्यों जो लोग न तो पन्ने पलट कर देखना चाहते हैं और न ही संदर्भो को समझना चाहते हैं, न जाने लिखवास की किस अन्तःप्रेरणा  के वशीभूत होकर बिना किसी सन्दर्भ,उद्धरण और साक्ष्य के प्रस्तुत किये ही वैचारिक विकृति के प्रतीक संशय ग्रस्त लेखन में ही अपने वृद्ध पौरुष का मिथ्या प्रदर्शन करते नहीं अघाते|

कहा जाता है की अंग्रेजों ने इंदु अथवा सिंधु को इंडो कहा और यह इंडियन हो गया| अरबों ने सिंधु को हिंदू कहा और यह हिन्दुस्थान हो गया| इंडियन ओशेन अथवा हिंद महासागर भी तो हिंदू ही है| अब यह संशय होगा की अगर हिंदू शब्द हिंदुओं की देन होती तो  वेदों में इसका उल्लेख क्यों नहीं है? पुराणों में तो होना ही चाहिए| वेदों में आर्य है, अनार्य है, दस्यु है, दास  है, ब्राम्हण है, क्षत्रिय है, वैश्य है, राजा है, शुद्र है तो हिंदू क्यों नहीं? अरे भैया आपने गीता पढ़ी है? त्रैगुण्यविषया वेदाः, निःस्त्रैगुन्यों भवार्जुन अर्थात वेद सत्व, रज और तम की ही चर्चा करते हैं, अर्जुन तू इससे परे हो जा| फिर वेदों में निः स्त्रैगुन्यता का प्रतीक यह शब्द हिंदू आता कहाँ से? आपने बृहस्पति आगम पढ़ी है? चलिए मैं उसका एक श्लोक बताता हूँ…….हिमालयात समारभ्य यावत इंदु सरोवरम|तं देव निर्मितं देशं हिन्दुस्थानाम प्रचक्षते|| अर्थात हिमालय से प्रारंभ होकर इंदु सरोवर (हिंद महासागर) तक यह देवताओं द्वारा निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है| कम से कम बृहस्पति आगम तो तब ही लिख दिया गया था जब इस्लाम का कहीं अता पता भी नहीं  था और ईसा मूसा तो अपने अस्तित्व में भी नहीं आये थे| अगर आपकी मान्यता के मुताबिक हिंदू एक फारसी शब्द है और फारसी में समस्त भारतीय स का ह हो जाता है तो सरस्वती हरह्वती क्यों नहीं हुई? समरकंद हमरकन्द क्यों नहीं हुआ? सीता की हिता क्यों नहीं कहा गया? सावित्री को हवित्री क्यों नहीं कहते?शायद को हायद क्यों नहीं कहा जाता? सारे जहाँ से अच्छा को हारे जहाँ से अच्छा क्यों नहीं कहते? साला को हाला क्यों नहीं कहा जाता? सूफी को हूफी क्यों नहीं कहते? सिलसिला को हिलहिला क्यों नहीं कहा जाता? सफा को हफ़ा क्यों नहीं कहा जाता? शमशुद्दीन को हम्हुद्दीन क्यों नहीं कहते? इल्तुतमिश को इल्तुत्मिह् काहे को नहीं नहीं कहा जाता और तो और ईरानियों का पौराणिक वंश भी अफरा सियाब की जगह अफरा हियाब होना चाहिए था| ऐसा तो होता नहीं की  भाषागत अक्षमता की वजह से किसी शब्द को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया जाए और शेष शब्दों में मनचाहा परिवर्तन कर दिया जाए| निरुक्त की दृष्टि से भी मातृ का मदर और मैटर होना तो आसान है किन्तु सिंधु का हिंदू हो जाना सिरे से ही गलत है|बीच के बिंदु को छोड़कर शेष दोनों अक्षर पूरी तरह से परिवर्तित हो जाएँ, यह कहाँ से संभव है?

सनातन धर्म, वैदिक धर्म, आर्य धर्म, ब्राम्हण धर्म, आर्ष धर्म, आर्यत्व, हिंदुत्व, मानवता इत्यादि इसके पर्यायवाची हैं जो हिंदू नामक एक व्यापक शब्द में इसी भांति समाहित हैं जैसे शर्बत में शक्कर और जल| बौद्ध, जैन, आर्य, अनार्य, सिख, वैष्णव, शाक्त, शैव, गाणपत्य, तंत्रागम इत्यादि हिंदू रूपी विशाल वट वृक्ष की शाखा – प्रशाखाएं हैं| गर्व से कहो की हम हिंदू हैं किसी हिंदूवादी संगठन द्वारा आविष्कृत नया नारा नहीं है बल्कि सम्पूर्ण विश्व में भारत की अप्रतिम सांस्कृतिक चेतना के प्रतीक स्वामी विवेकानंद की सिंह गर्जना है| इंडोनेशिया में हिंदू को हिंदू आगम कहा जाता है|

यं वैदिकाः मंत्रदृशः पुराणा

इन्द्रं, यमं मातरिश्वानमाहुः|

वेदान्तिनो निर्वचनीय मेकं,

यं ब्रम्ह शब्देन विनिर्दिशंती |

शास्तेती केचित, कतिचित कुमारः,

स्वामिति, मातेति, पितेती भक्त्या|

बुद्ध्स्तथार्ह्न्नीति बौद्ध जैनः,

सत श्री अकालेती च सिक्ख सन्तः|

यं प्रार्थयन्ते जग्दिशितारं|

स एक एव प्रभुरद्वितीयः|

अर्थात मन्त्रदृष्टा ऋषियों ने वेदों और पुराणों में जिन्हें  इंद्र, यम, अर्यमा और अश्विनी कह कर  पुकारा है, वेदान्तियों ने जिस अनिर्वचनीय को ब्रम्ह नामक शब्द से निर्दिष्ट किया है| शास्ता, कुमार, माता, पिता और स्वामिभक्ति के रूप में हम जिस परम तत्व को पूजते हैं बौद्धों ने जिन्हें बुद्ध और जैनियों ने जिन्हें अर्हत कह कर पुकारा है| सिख संतों ने जिस परमात्मा को सत् श्री अकाल का संबोधन दिया है, वह हिंदुओं का जगदीश्वर एक ही है|

हिंदू शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने साहित्य अमृत में एक बड़ा ही विचारोत्तेजक लेख लिखा है|आचार्य जी के अनुसार ”फारसी में हिंदू शब्द यद्यपि रुढ हो गया है तथापि यह उस भाषा का नहीं है|लोगों का ख्याल की फारसी का हिंदू शब्द संस्कृत सिंधु का अपभ्रंश है, वह लोगों का केवल भ्रम है|ऐसे अनेक शब्द हैं,जो भिन्न-भिन्न भाषाओँ में एक ही रूप में पाये जाते हैं|यहाँ तक की उनका अर्थ भी कहीं कहीं एक ही है; पर वे सब भिन्न भिन्न धातुओं से निकले हैं|” फारसी में हिंदू शब्द का अर्थ है चोर, डाकू, रहजन, गुलाम, काला, काफ़िर इत्यादि|क्या एक ऐसा शब्द जिसमें  स्पष्ट रूप से अपमान परिलक्षित होता हो कोई जाति बडे ही गौरव के साथ अपना लेगी और जबकि इससे स्पष्ट रूप से उसकी पहचान जुडी हो| नहीं कदापि नहीं, और क्या अब तक इस तथ्य से हमारे पूर्व पुरुष अनजान रहे होंगे,ऐसा भी नहीं है|अब प्रशन यह उठता है की आखिर हिंदू शब्द का सर्वाधिक प्राचीन उल्लेख किस ग्रन्थ में मिलता है और वहाँ उसका अर्थ क्या है? हिंदू शब्द का सर्वाधिक पुराना उल्लेख अग्निपूजक आर्यों के पवित्रतम ग्रन्थ जेंदावस्ता  में मिलता है? क्यों वेदों में क्यों नहीं? क्योंकि अग्निपूजक आर्य और इन्द्र्पुजक आर्य एक ही आर्य जाती की दो शाखाएं थी|इस्लामिक बर्बरता का सबसे पहला निशाना यही बना|अग्निपूजक आर्यों की पूरी प्रजाति ही नष्ट कर दी गयी|उनके पवित्रतम ग्रन्थ का चतुर्थांश भी नहीं बचा| जेंदावस्ता और वेद में ९० फीसदी समानता है, कुरान और वेद में २ फीसदी| वस्तुतः जेंदावस्ता और वेद लगभग समकालीन माने जा सकते हैं| ईसाईयों के अनुसार “बाइबिल” का पुराना भाग ईसा मसीह से भी पांच हजार साल पुराना है|our zendavesta is as anciat as the creation;it is as old as the sun or the moon.इसी जेंदावेस्ता में हनद नाम का एक शब्द मिलता है और हिन्दव नाम के एक पहाड़ का भी वर्णन मिलता है| जेंदावेस्ता का यह हनद ही आज का हिंदू और हिन्दव हिंदुकुश नाम की पहाड़ी है| अब प्रश्न यह उठता है की जब पारसी और वर्तमान हिंदू दोनों ही आर्य फिर उन्हें पारसी और हमें हनद क्यों कहा गया? स्पष्ट है भौगोलिक आधार पर भिन्नता प्रदर्शित करने के लिए| अब इस पारसी/हिब्रू हनद या हिंदू का अर्थ भी समझ लीजिए| इसका अर्थ होता है विक्रम, गौरव, विभव, प्रजा, शक्ति प्रभाव इत्यादि|यह अर्थ न तो अपमानजनक है और न ही अश्लील| इसी लिए हिंदुओं ने इसे अपने प्रत्येक परवर्ती ग्रंथो में भारत,सनातन,आर्य इत्यादि के पर्यायवाची के रूप में ज्यों का त्यों स्वीकार किया है|

एतत्देशप्रसुतस्य सकाशादाग्रजन्म:|

स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन, पृथिव्याः सर्वमानवा:||

अर्थात इस प्रकार देश में उत्पन्न होने वाले, अपने पहले के लोगों से शिक्षा ग्रहण करें|पृथ्वी क्व समस्त मानव अपने अपने चरित्र से इस लोक को शिक्षा प्रदान करें|यह हिंदुत्व का आदर्श है |

त्यजेदेकं कुलस्यार्थे,ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत|

ग्रामं जनपदस्यार्थे, आत्मार्थे पृथ्वीं त्यजेत ||

अर्थात कुल के लिए स्वयं का, ग्राम के लिए कुल का,जनपद के लिए ग्राम का और मानवता के लिए पृथ्वी तक का परित्याग कर दे| इस तरह का उपदेश हिंदुओं को परंपरा से प्राप्त है|

यूँ तो कहने को बहुत से लोग अपने आपको धरती पुत्र कहते मिल जायेंगे किन्तु माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः अर्थात धरती माता है और हम पृथ्वी के पुत्र हैं का स्पष्ट उद्घोष करने के कारण वास्तव में हिंदू ही समाजवादी धरतीपुत्र कहलाने का वास्तविक अधिकारी  है| हिंदू नमक शब्द पर भ्रम का वातावरण सृजित  करने वाले तथाकथित छद्म (अ)बुद्धिजीवी प्राणी हिंदू शब्द के कुछ और विशलेषण देखें –

हिन्सायाम दुश्यते यस्य स हिंदू – अर्थात हिंसा से दूर रहने वाला हिंदू

हन्ति दुर्जनं यस्य स हिंदू  – अर्थात दुष्टों का दमन करने वाला हिंदू

हीं दुष्यति यस्य स हिंदू  – अर्थात हिंसकों का विनाश करने वाला हिंदू

हीनं दुष्यति स हिंदू  – अर्थात निम्नता को दूषित समझने वाला हिंदू

आपको इसमें से जो भी हिंदू अच्छा लगता हो आप चुन सकते है….यहाँ कम से कम इतनी आजादी तो है ही| अच्छा अब हिंदू शब्द की एक परिभाषा भी दिए देते है, हो सकता है आपको कुछ अच्छा लग जाये|

गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ: मति:|

पुनर्जन्मनि विश्वास:,स वे हिन्दुरिती स्मृत:||

अर्थात गोमाता, ओंकार और पुनर्जन्म में आस्था रखने वाला हिंदू |डॉ भीमराव अम्बेडकर जी भी इस तथ्य से अपरिचित नहीं थे इसीलिए जब विभाजनकारी सिखों ने अपने आपको हिंदुओं से अलग चिन्हित किये जाने की मांग की, तो वे तन कर खड़े हो गए और बौद्ध,जैन,सनातनी,सिख सभी को हिंदू माना|वेदों में हिंदू का पर्यायवाची शब्द भारत या आर्य शताधिक बार आया है| विष्णुपुराण में तो हिंदुओं के नाम भारत की पक्की रजिस्ट्री ही हो गयी है, वह भी चौहद्दी बांधकर|ध्यान दीजियेगा –

उत्तरं यद् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिण|

वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र संतति:||

अर्थात जो समुद्र से उत्तर है (चौहद्दी न. १ ) और हिमालय से दक्षिण है (चौहद्दी न. २ ) वह भारत नाम का भूभाग है और उसकी संतति, संतान (हिंदू ) भारतीय हैं|

जहाँ तक मेरी जानकारी है| यह श्लोक ईसा या मूसा से कुछ पहले का तो होगा ही और नहीं तो गुप्तकाल का होना तो निश्चित ही है| कलिका पुराण और मेरु तंत्र में हिंदू ज्यों का त्यों आया है|वर्तमान हिंदू ला के मुताबिक वेदों में विश्वास रखने वाला हिंदू माना गया है|आज  तो ९० प्रतिशत हिंदुओं ने वेद देखा भी नहीं होगा तो क्या हिंदू ला के अनुसार वे हिंदू नहीं होने चाहिए| स्पष्ट है की हिंदू शब्द आर्य और भारत की ही भांति श्रेष्ठता और गौरव का बोधक होने के कारण स्वयं में पूर्ण है और आस्तिक, नास्तिक वेद, लवेद  के आधार पर कोई भेद विभेद नहीं करता|

हिंदुओं को उनके जातीय चेतना से पृथक करने और आत्म विस्मृति के निरंतर प्रयासों ने ही आज पुरे भारत में विभाजन से पूर्व की स्थिति का निर्माण कर दिया है|आश्चर्य की बात तो यह है की लगातार २ सौ सालों तक जिस आत्मविस्मृति की मदिरा पिलाकर अंग्रजों ने सम्पूर्ण भारत में शासन किया,आजादी के पश्चात कांग्रेस और अन्य तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल और छद्म बुद्धिजीवी आज भी जनता को वही मदिरा पिला रहे हैं|विभाजन के समय लीगी नेताओं द्वारा लड़ के लिया है पाकिस्तान,हंस के लेंगे हिंदुस्तान जैसा नारा लगाया जाता था और आज इंडियन मुजहिद्दीन अथवा हिंदू मुजाहिद्दीन (अर्थ का अनर्थ न किया जाये…इंडियन का अर्थ हिंदू ही होता है) जैसे हिंदू इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा धमाके करके किया जा रहा है| कुछ लोग हिंदी को एक भाषा मानते हैं ………………

मैं हिंदी ठेठ हिंदी खून हिंदी जात हिंदी हूँ , यही मजहब यही फिरका यही है खानदा मेरा|

भैया जहाँ जहाँ मैंने गलती से हिंदी लिख दिया होगा हिंदू हिंदू कर लीजियेगा|



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