मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
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एक पुरानी कविता
झटका सा लगा मुझे-
जब सुना-
चवन्नियाँ बहिष्कृत हो गयी-
सिक्कों के समाज से|
जैसे-
चवन्नियों के साथ,
लुट सा गया –
मेरा वजूद |
करोड़पति बनने का स्वप्न –
चकनाचूर|
झडने लगा –
शीशे के मकान का पॉलिश,
जिसमे –
दशकों की चवन्नियां चिपका कर –
मैं –
अपने घर का –
नंगापन –
ढकने की –
कोशिश –
में लगा था |
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