मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
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नंदा दीप जलाना होगा|
अंध तमस फिर से मंडराया,
मेधा पर संकट है छाया|
फटी जेब और हाँथ है खाली,
बोलो कैसे मने दिवाली ?
कोई देव नहीं आएगा,
अब खुद ही तुल जाना होगा|
नंदा दीप जलाना होगा||
केहरी के गह्वर में गर्जन,
अरि-ललकार सुनी कितने जन?
भेंड, भेड़िया बनकर आया,
जिसका खाया,उसका गाया|
मात्स्य-न्याय फिर से प्रचलन में,
यह दुश्चक्र मिटाना होगा|
नंदा-दीप जलाना होगा|
नयनों से भी नहीं दीखता,
जो हँसता था आज चीखता|
घरियालों के नेत्र ताकते,
कई शतक हम रहे झांकते|
रक्त हुआ ठंडा या बंजर भूमि,
नहीं, गरमाना होगा|
नंदा दीप जलाना होगा ||
मनोज कुमार सिंह ”मयंक”
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