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आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ (भाग १)

मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
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आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ, झांकी हिंदुस्तान की |
इस मिटटी का क्या करना है,तुम्ही बताओ लाल जी||
वन्देमातरम,वन्देमातरम ||
जयचंदों की टोली अंग्रेजो ने पहले जान लिया|
बेईमानों का देश कार्नवालिस ने था पहचान लिया|
मैकाले ने वेदों की वाणी को कैसा मान दिया|
यह गड़ेरियों का गाना है सचमुच सुंदर नाम दिया|
और आज इनके चमचे पूजा करते शैतान की||
इस मिटटी का क्या करना है,तुम्ही बताओ लाल जी||
वन्देमातरम,वन्देमातरम ||
कैसा सुन्दर देश हमारे पुरखे गाली पाते हैं |
जो मिटटी पर मरते हैं सारे गरियाये जाते हैं |
भाषण देने वाले सब भंडुये नेता बन जाते हैं |
संसद में जाकर सियार सा हुआ-हुआ चिल्लाते हैं|
रहते हैं हिन्दोस्तान में बातें पाकिस्तान की ||
इस मिटटी का क्या करना है,तुम्ही बताओ लाल जी||
वन्देमातरम,वन्देमातरम ||
यहाँ लुटेरा है राणा , अकबर हरि का अवतार है|
शिवा पहाड़ी चूहा, जिन्दा पीर से सबको प्यार है |
सिमी सारथि राजनीती का, सीमा का व्यापार है |
उधर तेज है धार , इधर जिह्वा बैठी लाचार है |
कातिल ही करते हैं बातें दया, धर्म और प्यार की |
इस मिटटी का क्या करना है,तुम्ही बताओ लाल जी||
वन्देमातरम,वन्देमातरम ||
सूप सूप चुप ही रहती है,चलनी छन छन बोल रही |
देखो तो कैसी कैसी बातें यह सम्मुख खोल रही |
चिकनी चुपड़ी बातें कह कर धर्म-इमां को तोल रही|
गंगाजल में शीशा, पारा, कूड़ा, कचरा घोल रही |
हम यदि गेंहूँ की कहते हैं तो वे कहते धान की|
इस मिटटी का क्या करना है,तुम्ही बताओ लाल जी||
वन्देमातरम,वन्देमातरम ||
अन्न नहीं कंडोम बिकेगा खुलेआम बाजारों में |
बकरी की मिमियाहट होगी पौरुष के हुंकारों में |
कर्णधार को सेक्स मिलेगा अब कवि के उद्गारों में |
और निराशा का दर्शन अब होगा गीता-सारों में |
उनकी खिचड़ी पका करेगी, नहीं गलेगी दाल जी |
इस मिटटी का क्या करना है,तुम्ही बताओ लाल जी||
वन्देमातरम,वन्देमातरम ||
न दैन्यम न पलायनम
क्रमशः
monkey

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