Menu
blogid : 1151 postid : 154

कहीँ तुम्हारा ग्रंथ जले

मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
  • 65 Posts
  • 969 Comments

कहीँ तुम्हारा ग्रंथ जले और कहीँ फूँक दो तुम सिँहासन।
किससे जाकर कहेँ राजगद्दी पर बैठा भ्रष्ट दुःशासन॥

कागज के जलने से बढ़कर निन्दित रक्त प्रवाह नहीँ है?
उनको क्या बतलाये जिनको मानवता की चाह नहीँ है॥
माना ग्रंथ जलाना निन्दित किँतु तेरा अभिनन्दन क्योँ हो?
जब सब कुछ ही खण्डन लायक, फिर महिमा मण्डन ही क्योँ हो?
क्या हमको भी तक्षशिला और नालन्दा की याद नहीँ है?
अथवा अलक्षेन्द्र ग्रंथालय की कोई परवाह नहीँ है?

किँतु कहाँ से सीखा तुमने तेरा ग्रंथ नहीँ बतलाता।
जो खुद को पापी कहता है, वह क्योँकर हो पाप सिखाता॥
क्षमा,दया,करुणा ही हमको नत कर देती जीसस बन्दे।M_Id_165872_Kashmir_violence
किँतु बताओ हमेँ कहाँ से आग लगाना सीखा तुमने?
जिसने तेरी पोथी फूँकी वह पापी सचमुच पापी है।
लेकिन इस पर रक्त बहाने वाला तू भी अपराधी है।
मैँ भी अपराधी हूँ क्योँकि मैँने जो जाना समझा है।
बिना किसी भय पक्षपात के जनता के सम्मुख रक्खा है।ॐ

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to आर.एन. शाहीCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh