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प्रज्ञा ठाकुर (कविता)

मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
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प्रिय मित्र चातक जी को समर्पित

pragya_thakur_20090202यह एक नया खतरा आया फिर से केसरिया बाने पर।
प्रज्ञा ठाकुर की बात नहीँ सारा हिँदुत्व निशाने पर।
दो – चार मरे और पापमुक्त बर्बरतम मध्यकाल सारा।
जिसके उत्तर मेँ क्रास ने दिया था, क्रूसेड जैसा नारा।
यदि हम भी ऐसा ही करते तो अरब नहीँ बच पाता रे।
हिँदु यदि आतंकी होता, अद्वैत नही सिखलाता रे।
कुछ देता नहीँ विश्व को केवल लड़ता दाने दाने पर।
प्रज्ञा ठाकुर की बात नहीँ, सारा हिन्दुत्व निशाने पर।
तुमको कसाब और अफजल के भी अधिकारोँ का ध्यान रहा।
हुर्रियत, सिमी और लश्कर को भी है तुमने सम्मान दिया।
और लगे पैरवी करने तुम मोदी विरुद्ध, संयुक्त राज्य।
शर्माते हो यह कहने मेँ, भारत अखण्ड, भारत अभाज्य।
क्या अब भी भारत चलता है, बाहर के किसी इशारे पर।
प्रज्ञा ठाकुर की बात नही, सारा हिँदुत्व निशाने पर।
शुभ वंदेमातरम् मंत्र यहाँ, उद्घोष नही, ललकार नही।
हास्यास्पद है माँ की पूजा करना उनको स्वीकार नहीँ।
और उनके हित हम भी बदलेँ, हम भी अपनी पूजा छोड़ेँ।
छोड़े पुरखोँ का धर्म, शरीयत से अपना नाता जोड़े।
तो सुन लो यह स्वीकार नहीँ।
होने वाली है हार नहीँ।
यह असि है मेरे पुरखोँ की,
मुड़ने वाली है धार नहीँ।
इतिहास हमारा साक्षी है, जीते आये है मर मर कर।
प्रज्ञा ठाकुर की बात नहीँ, सारा हिँदुत्व निशाने पर।

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