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तुम नही अकेली हो प्रियतम

मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
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तुम नहीँ अकेली हो प्रियतम, मैँ हरपल साथ तुम्हारे हूँ।
मैँ कब से तुम्हे पुकार रहा, आ, बैठा सिँधु किनारे हूँ।
मेरी अप्रतिहत गति तुम हो, चिन्तन मेँ रत यह मति तुम हो।
मैँ चलता तो तुम साथ चलो, मैँ रुकता हूँ तो यति तुम हो।
तुम मेरे श्वासोँ मेँ आती, उच्छवासोँ से बाहर जाती।
उर मेँ तुम सदा धड़कती हो, कानोँ मेँ कोयल सी गाती।
तुम मुझमेँ हो, मैँ तुममेँ हूँ, मैँ जीता तेरे सहारे हूँ।
तुम नहीँ अकेली हो प्रियतम, मैँ हरपल साथ तुम्हारे हूँ।
तुम सोच रही मैँ तन्हाँ हूँ, यह भ्रम है, सच्ची बात नहीँ।
अच्छा अब तुम्हीँ बताओ तो, कब तेरा मेरा साथ नहीँ?
कब तुमने अपनाया मुझको? कब तुमने गले लगाया है?
कब तुमने मेरा ध्यान किया? अग- जग सबकुछ बिसराया है।
अपने कपाट को खोल देख, आ पहुँचा तेरे दुआरे हूँ।
तुम नहीँ अकेली हो प्रियतम मैँ हरपल साथ तुम्हारे हूँ।
पर, एक प्रतिज्ञा भी सुन लो, मैँ हूँ तो कोई और नहीँ।
तुम इसे स्वार्थ कह सकती हो, पर मेरा कोई ठौर नहीँ
मैँ रमता हूँ भीतर बाहर, तुम अनुभव तो करना सीखो।
यह एक समर्पण शर्तहीन, तुम अर्पण तो करना सीखो।
तुम केन्द्र बिँदु, मै पूर्ण परिधि आयास तुम्हारा धारे हूँ।
तुम नहीँ अकेली हो प्रियतम, मैँ हरपल साथ तुम्हारे हूँ।

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