मनोज कुमार सिँह 'मयंक'
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भाषाओँ की खीँचातानी, क्षेत्रवाद की विषम कहानी।
आरक्षण के भस्मासुर को पुनः मिला वरदान भवानी।
जिन हाँथोँ को काम चाहिये, उनमेँ ए॰ के॰ सैतालिस है।
कदम-कदम पर नया छलावा,अमृत के धोखे मेँ विष है।
फिर कुरान की पोथी लेकर चंगेजी तलवार उठा है।
एक विदेशी के पैरोँ पर सारा हिंदुस्थान झुका है।
काश्मीर से लेकर केरल और कच्छ से कामरुप तक।
असुरक्षित हैँ लोग,स्थिति होती जाती बद से बदतर।
आओ प्रलय मचाओ रुद्रोँ, स्वागत मृत्यु तुम्हारा स्वागत।
छोड़ो मेरे यार नहीँ बदलेगा भारत।
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